वतन के इश्क में
वतन के इश्क में
कुछ इस कदर दीवाने थे वो
वतन के इश्क में,
जख्म तन पर खाते रहे
फिर भी आखरी साँस तक मुस्कुराते रहे।
कुछ इस तरह के अरमाँँ थे उनके
अपनों के लिये,
हम रहें न रहें
पर खुशियों से यह चमन खिलखिलाता रहें।
