अधभरा ही रहा मैं ....
अधभरा ही रहा मैं ....
हजारों ख्वाहिश मन में दबाता
अनेक बातें लोगों से छुपाता
दोस्तों की भीड़ में भी...
अकेला ही खडा रहा मैं....
अधभरा ही रहा मैं...
अपनी पसंद को भी नापसंद बताता
सही होने पर भी लोगों के लिए गलत बताता
अपने आप को भी...
धीरे-धीरे भुलाता रहा मैं...
अधभरा ही रहा मैं...
