“ वसुधेव कुटुम्बकंम “
“ वसुधेव कुटुम्बकंम “
जमीं पर हम रहते हैं आसमाँ पे घर बनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
ना दूरी रहे कोई ना ,मिलने की बंदिश हो,
सबों के पास रहकर,नकोई भी रंजिश हो!!
मिलन हो प्यार से सबका मंदिर ऐसा बनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
नहीं हो धर्म का संकट ,सभी धर्मों की पूजा हो ,
रहे सद्भावना सब में ,नहीं कोई भी दूजा हो !
प्यार से ही प्यार का पैगाम सबको हम देना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
सब एक मानव हैं यहाँ,रंग रूप भले भिन्य हो ,
रक्त बहता एक सा ही ,देश क्यों ना भिन्य हो !!
देश को हमने ही बनाया एक बार स्वर्ग बनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
युद्ध से विध्वंश होता ,मानवता विलखती है ,
कटुता में फँसकर प्राणी ,नर -नारी सब रोती है !!
युद्ध नहीं है विकल्प कभी हम शांति बनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
धरती का है कर्ज बहुत ,हम उसे बचना चाहते हैं ,
कॉर्बनउत्सर्जन दानव को ,सबक सीखना चाहते हैं !!
खुली साँस के परिवेशों में सबको रखना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं!!
जमीं पर हम रहते हैं आसमाँ पे घर बनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !।