सार्थक मरना
सार्थक मरना
मिट्टी में दफनाकर,
संगमरमर की कब्र पर
नाम खुदवाना ,
नहीं है मेरा सार्थक मरना।
मुझे तो मन में है बसना,
न कि चीत्कार से आँसुओं में बहना।
मेरे अपनो की डबडबाई आँखों में,
इक बूंद बनकर है तिरना,
यही है मेरा सार्थक मरना।
घर भूमि पैसे में नहीं है बंटना,
सुख - दुःख हवा पानी और चाँदनी में
खुशबू बनकर है घुलना,
यही है मेरा सार्थक मरना।
हरेक दिन दैनिकी में ,
तारीख बदलने के मानिंद नहीं ,
मुझे तो अनुभवों की तरह ,
चट्टान के मानिंद ,
युगों - युगों तक है जीना,
यही है मेरा सार्थक मरना।
तुम्हारी दिनचर्या में ,
एक भी क्षण तुम्हें,
मेरा याद आना,
यही है मेरा सार्थक मरना।
मेरे होने के समान ही ,
मेरे न होने पर भी,
जग मे यूँ ही हर पल जीना ,
यही है मेरा सार्थक मरना,
यही है मेरा सार्थक मरना।
सभी वीर सैनिकों को समर्पित।
