तुमभी अैसे सहलानी।…
तुमभी अैसे सहलानी।…
हूँ मैं जल, कभी सरवर, कभी सरिता हिमी
और कभी भाप बादल गगन गामी।
हो जाता जब रूप सागर खारा,
नहीं तब भी कभी रोना।
सूनो मेरी कहानी, तुम भी ऐसे सहलानी।
हूँ मैं तरु, अंकुर बन प्रकट भयों जब धरासे,
नाज़ुक हर कोई आके सताये।
मैं ऋतु संग ढलता पलता जीता
मंजरी पुष्प फल बासंती वैभव पाता।
शित गोद में पतझड मेरी कहानी,
तुम भी ऐसे सहलानी।
हम है नौका, जल अनिल संग नाता
बहते रहना, संसार सागरसे सबका ऐसा याराना।
टकराते मिल जाये जो मंझील, मानो,
वह ही अपनी कहानी,
हम सब ऐसे सहलानी।।
पर यारों, ब़तनकी ख़ुशियॉ लूंटनेकी,
जो करे कोई ग़ुस्ताख़ी।
अेक बात सदा याद रखना,
कफ़न संग शस्त्र उठाना।
धन्य जवान ! त्रिरंगी होगी अपनी कहानी,
हम होंगे अमर सहलानी।
