राष्ट्र धर्मकी ज्योत जगे…
राष्ट्र धर्मकी ज्योत जगे…
सुनो वक़्त ललकार अंतर से,
मिलके हम सब रंग भरे।
जल थल नभमें हो नित्य मंगल,
विश्व कल्याणी भाव भरे।।
कौशल विज्ञान है कला वरदान,
पर्यावरणकी रक्षा मंत्र बने।
निर्मल विरासत भावी सुखदाता,
भाव जीवनका वरदान बने।।
जन जनमें अब जोश पले,
राष्ट्र धर्मकी ज्योत जगे।
मानवता ही विश्व सेतु है बंधु,
होगा, होके रहेगा भाव फले।।
कुछ हो रहा है,
कुछ होके रहेगा,
देश हमारा गहना बने।
देश हित जन धर्म हो प्यारे,
जन जनमें ये जोश पले।।
हिमालय गंगा यमुना पावन,
सर्व धर्म सम्भाव खिलें।
गांधी राह अहिंसा कल्याणी
स्नेह समर्पण से शाम ढले।।
