वृद्ध की वेदना
वृद्ध की वेदना
बेटे को चलना सिखलाया
बेटे को बोलना भी सिखलाया
पढ़ाया-लिखाया
ख़ुद की ख्वाहिश दफ़न कर दी
पर वही बेटा जब बड़ा हुआ तो
मुझे घर से बाहर निकाल कर
वृद्धाश्रम में छोड़ कर
चला गया परदेश,
अपनी ज़िंदगी का आनंद उठाने
एक पल के लिए भी उसकी
आँखों से आंसू नहीं निकले
एक पल के लिए भी
उसे याद नहीं आई बचपन की वो यादें
भूल गया सबकुछ
भूल गया बेटा कि
कैसे उसके पापा पीठ पर
बिठाकर ले जाते थे गाँव का मेला दिखाने
भूल गया बेटा कि
पापा ने सर्वस्व न्यौछावर किया था,
पुत्र की ख़ुशी के लिए
एक पल में पिता से सब रिश्ते
तोड़कर बेटा तू चला तो
गया एक नई ज़िंदगी जीने,
पर स्मरण रखना मेरे लाल
कि जब मैं ईश्वर के पास
सदा के लिए चला जाऊंगा
तो तुम पछताओगे बहुत
फिर मैं चाहकर भी वापस
नहीं आऊंगा तुम्हारे पास
फिर भी मेरा आशीष
सदा रहेगा बेटा तुम्हारे साथ
भले तुम याद करना या नहीं
पर मैं सदा निहारता रहूंगा
तुम्हारे चेहरे को मरकर भी।।