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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

वो वक्त की बात थी यार..

वो वक्त की बात थी यार..

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कितनी मासूमियत थी,

वो जब मेरी जिंदगी थी,

हर पल एक ही ख्याल था,

वो सदा खुश ही रहे सनम,


जिसकी खुशी में निहाल था,

वो वक्त की बात थी यार,

जब हवा भी रुख बदलती थी।


उसके करीब जब मैं होता था,

जिंदगी को नसीब समझता था।

आज से कल तक जो हुआ था,

वो प्यार का मदहोश नशा था,


जो हालात पर उतर गया कश्ती से,

वो कहां अपना हुआ दिल की बस्ती में।


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