वो ठंड भरी रात
वो ठंड भरी रात
कड़कड़ाती ठंड में छाया सघन कोहरा,
ठंड इतनी फूलों पर भी ना मंडराया भौंरा,
दिन हो गए छोटे रातों का हो गया बिस्तार,
सड़कों पर रातें काट रहे जाने कितने ही लाचार ।
शीत हवाएँ डोल रही ,हो रही कोहरे की बौछार,
चारदीवारी नसीब नहीं झेल रहे ठंड की मार,
जहाँ सो रहे थे वहाँ कुछ लकड़ियाँ सुलग रही थी,
फटे हुए कंबल में दुबके जैसे हड्डियाँ हिल रही थी I
खुद को जब देखा कपड़े ही कपड़े पहने थे,
स्वेटर ,जैकेट और मफलर में भी कांप रहा था,
वो बेचारा फटे कम्बल से पूरे परिवार को झांप रहा था,
उसे देख देख कर मैं हर स्थिति को भांप रहा थाI
हवा कुछ जोर से बह रही थी बादलों को देखा
रह रहकर बारिश का मंजर नजर आ रहा था,
इस बात से बेखबर वो सड़क पर सो रहा था,
मुझे ये हालात देख- देखकर तरस आ रहा था I
ओस की बूंदों ने कंबल पर अपना कब्जा कर लिया,
मैं दूर खड़ा यह सब अपनी आंखों से देख रहा था,
कुछ देर बाद बारिश की बूंदे शुरू हो गई,
सड़कों के लोगों ने अपना कंबल उठाकर ,
अपना आशियाना बदल लिया I