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Kanchan Jharkhande

Romance

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Kanchan Jharkhande

Romance

वो शर्मोहया अब अदा हो गई..

वो शर्मोहया अब अदा हो गई..

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हम खामोश थे

तुम भी खामोश थे

ये मुस्कुराने की आदत सी

क्या हो गई

हवा का रुख अब 

ये क्या हो गया


वो शर्मोहया 

अब अदा हो गई

वो बेख़बर ऐ सौंदर्य 

वो मासूम ऐ बगुल

वो लूटा के चमन

गुलिस्तां हो गई


तेरी सख्त ऐ अदा

तेरी बेरुख बयां

क्या कहूँ के अब

जिगर ऐ फिदा हो गई

वो पतझड़ बसंत

वो राग ऐ रिदम


वो मासूमियत मेरी 

न जाने कहाँ खो गई

तुम जो आधुनिक हुए

तुम जो निखर गये

तो क्या तुम्हारी वो

अंदाज ऐ अदा भी 

दरबदर,


यहाँ-वहाँ हो गई ?

तेरी तीर ऐ नजर 

मेरा कातिल जिगर

तेरी पलटने की अदा

रुखसार ऐ खतावार हो गई

मेरी मोहब्बत ऐ मासूम

हरफे खफ़ा,

हर दफ़ा तुझ पर

निशार हो गई।


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