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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

वो पत्थर तोड़ती

वो पत्थर तोड़ती

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वो पीठ पर बच्चे को बांधे

तपती धूप में

सड़क किनारे पत्थर तोड़ती,

पीठ पर बच्चा कुछ कुम्हलाया सा

दूध के लिए,

रो - रो कर बहते आँसू भी धूप में 

गालों में ही उसके सूख गए,

और वो इसी आस में 

सो गया कि माँ 

अब दूध पिलाएगी,

पर ये नियति है उसकी

जीने के लिए

ये जरूरी भी है,

आखिर पेट की अगन

ममता पर भारी जो पड़ गई,

वो चाहती है 

छाँव का एक टुकड़ा,

जहां बैठ कर अपने ममता का आंचल

उस पर ओढ़ा सके,

पर ये उसकी किस्मत में कहां

उसे तो बस 

यूं पत्थरों को तोड़ना है,

जो खुद भाव शून्य है 

और कठोर हो गए हैं 

इस कड़ी धूप में।


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