वो पल
वो पल
जाने कहाँ खो गये
कहीं आंख मूँदकर सो गये
वो पल जो गुजरे थे
तुम्हारी जुल्फों की छांव में
उस अमवां के गांव में
वो कोयल की हूक करती कूक में
वो सोंधी सी चूल्हे की फूँक में
जहाँ अलाव जला करता था
आँचल के पल्ले से गर्म पतीला पकड़ा करता था
होंठों की प्यास जहाँ मासूम पोखरों से होती हुई
नदी तालाबों से भरती थी
जहाँ गांव की अल्हड़ पनिहारीन
कच्ची मुंडेर पर चला करती थी
जहाँ समय का पहिया दिन रात घूमा करता था
दुःख दर्द मिलकर सब सहते थे
इंसान -इंसान बनकर ही मस्ती में झूमा करता था
अब वो पल बस यादों में ही रह गये है
बड़े बुजुर्ग आने वाले श्रावण बस यही कह गये है
जीयो हर पल को उम्मीद से ज़्यादा
तभी मिलेगा तुम्हें भी कुछ अलहदा
उम्मीद से बढ़कर सोच से ज़्यादा.......