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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy Others

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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy Others

वो पहले जैसा अब प्यार कहां ?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां ?

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वो चुपके से निगाहें झुका लेना

मुझे देखना और मुस्कुरा देना,

बिन कहे सब कुछ कह जाना,

अब ऐसे जज़्बातों की बात कहां ?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां ?


वो चिट्ठियों में दिल की बातें करना

वो रातों में जगना उन्हें याद करना,

इक झलक पाने को हरदम तरसना

अब वो पहली सच्ची चाहत कहां ?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां ?


अब तो हर रिश्ते में सौदा होता है 

प्यार कहां यहां तो धोखा होता है,

दिल नहीं जिस्म की भूख होती है 

अब यार के लिए वो सच्ची तड़प कहां?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां?


जिसे देख आंखें भीग जाती थीं 

जिसके नाम से धड़कन जाग जाती थी, 

अब प्यार में दिखावा सब झूठ फरेब है 

इस प्यार में अपनों का एहसास कहां?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां?


यहां तृष्णा है वासना की चिंगारी है

हर छुअन में मतलब कि यारी है,

दिल की सच्चाई तिल तिल हारी है,

वो पवित्र प्रेम की अब पुकार कहां?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां?


वो पायल की छन छन में याद आती थी 

वो सर्द रातों में बात दूर तक जाती थी, 

हर मौसम उसका पैगाम लाता था 

अब ऐसे खुशनुमा मौसम की बात कहां ?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां?


अब स्टेटस में रिश्ते तय होते हैं

इमोजियों से जज़्बात खोते हैं,

हक़ीकत से लोग नज़रे चुराते हैं 

झूठे आईने में अब वह संसार कहां ?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां?


कभी चूड़ियों की खनक में प्यार था

माशूका की आंखों में इकरार था,

अब सब यहां मतलबी सा दिखता है 

वो सादगी में लिपटा रूप कहां ?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां?


वो पहली बारिश में भीगने का मन होता था 

आंखों में सदा गुलाबी इश्क होता था,

घंटों खामोश एक दूजे में डूबे हम रहते थे 

अब वो ख़ामोशी का इकरार कहां ?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां?

 

आज प्रेम, इश्क शब्दों का शोर बहुत है

दिलों में खोखले होते भावों का दौर है,

यहां हर साज़ बजता है मगर बेसुरा,

वो पहले जैसा अब कोई तार कहां ?

वो पहले जैसा अब प्यार कहां?


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