वो मीठी कसक
वो मीठी कसक
जब कालेज आया,
दोस्तों को लड़कियों से,
घिरा पाया,
मेरे साथ कोई न होने से,
मन उदास पाया,
बहुत इच्छा जागती,
मेरी भी कोई हो,
लेकिन हिम्मत जबाव दे जाती।
एक शहर में था,
सांस्कृतिक कार्यक्रम,
वो भी बैठा था पीछे,
तभी एक आकृति आई,
उसकी खुबसूरती देख,
दिल की गति,
हद से बाहर हो गई,
वो उसे एक टक देखता रहा,
बाकि सब भूल गया,
लेकिन प्यार का तीर,
दिल के आरपार हो गया।
कुछ होने लगा ऐसे,
जहां भी लगा जाने,
वो लगी टकरने,
कहावत वो सच होती दिखी,
अगर हो सच्ची महोबत,
तो उपर वाला भी करता मदद।
आखिर जब सुबह वो कालेज जाता,
तो भी उसे आसपास पाता,
जिससे प्यार का बीज फूटकर,
अंकुर हो गया,
जैसे जैसे सामना होने लगा,
प्यार का पोधा फलने फूलने लगा,
अगर वो क्लास में बैठा होता,
तो भी उसे कोरीडोर में पाता,
बात इस हद तक आ गई,
उसको किताबों में भी,
वो नज़र आने लगी।
लेकिन वो इतना डरपोक था,
उस तक बात न पहुंचा पाता,
बस उसे देखकर ही,
सपने बुनता,
और खुश रहता।
अगर किसी दिन वो न मिले,
तो दिनभर उदास रहता,
और मन में सवाल आता,
आज क्यों नहीं आई,
कहीं किसी ओर की तो नहीं हो गई।
आखिर एग्जाम आ गया,
लेकिन उसकी किताब तो खुली,
परंतु दिमाग में वो बसी,
आखिर वो एग्जाम पासकर,
बाहर पढ़ने चला गया,
उससे लिंक टूट गया,
लेकिन जब भी छूट्टीयों में आता,
तो मन उसे पूछता,
परंतु उतर न मिलता।
इस तरह ये था,
किसी के पहले प्यार का किस्सा,
जिसका बीज बोया गया,
अंकुर फूटा,
पौधा बना,
लेकिन सब एक तरफा।