वो मौन रह गई
वो मौन रह गई
वो मौन रह गई मेरे एक प्रश्न पर
जो मैंने पूछा था कितने जतन कर
पूछा तो था बड़ा संभल कर
हृदय में अनुराग को भर कर
फिर भी...
प्रश्न का अनुत्तरित रह जाना
यूं मुस्कुरा कर चला जाना
ख्वाबों को फिर जगा जाना
अरमानों को फिर खिला जाना।
हृदय तरंग का बज जाना
प्रेम प्रसंग का जैसे मिल जाना
खुद में भी उनको देखा जाना
स्वप्न में भो उनका आना जाना।
न जाने...
किस ओर इशारा करता है
कवि तो कविता का सहारा लेता है
फिर भी प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है
और फिर पीछे आशाएं छोड़ जाता है
न जाने कैसे ये कविता बन जाता है।
