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SMRITI SHIKHHA

Comedy Inspirational Children

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SMRITI SHIKHHA

Comedy Inspirational Children

वो दिन भी क्या दिन थे

वो दिन भी क्या दिन थे

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क्या दिन थे वो जहां कुछ सोचना समझना था नहीं 

जहां था तोह सिर्फ मस्ती करना 

और अच्छा अच्छा खाना खाना

मां के हाथों से बना हुवा खाना खाना

जब चाहे जो मांगो तब मिल जाना 

तब था तोह बिना नाराज़ हुए भी मनाना

मां और पापा की लाडली होना

वो दिन भी क्या दिन थे।


वो दिन भी क्या दिन थे

जहां थी तोह सिर्फ और सिर्फ खुशियां

दुःख और दर्द क्या होता है तब तो पता ही नहीं था

छोटी सी चोट लग जाने पर ज़ोर ज़ोर से रोना

एक पल के लिए ओझल हो जाने पर 

मां का पूरा कायनाथ एक कर के ढूंढना 

छिप जाकर सब को परेशान करना 

वो दिन भी क्या दिन थे

बड़ा याद आते हैं वो दिन।


पैदा होने पर मां के चीख ने पर 

मेरे ज़ोर ज़ोर से रोने पर सबका मुस्कुराना 

सबके आखों में खुशियों के आसूं आ जाना 

डॉक्टर बुआ का ये कहना " बेटी हुई है 

बड़ी प्यारी हुई है इसको सबके नज़र से बचाना 

इसका नज़र उतारना काला टीका लगाना "

काला टीका और मां के हाथों का बना हूवा काजल लगाना

पता नहीं कहां चले गए वो दिन बड़े याद आते हैं वो दिन।


सोचते हैं अब पता ही नहीं चला कितनी जल्दी और कब 

बीत गई हमारी बचपन बस अब सबकी यादों में ही

रेहेता है हमारा बचपन और तस्वीरों में रेहेता है 

जिनका घर में एल्बम पड़ा रेहेता है

सिर्फ और सिर्फ तभी खुलता है जब कभी 

कोई मेहमान आ कर उसके बारे में अगर पूछ लेता है 

तभी याद किए जाते हैं हमारे बचपन की यादें

और हमारी बचपन में की हुई शरारतें और फिर ये सोचे

की नजाने कहां चले गए वो दिन।


जब बहार से घर पर कोई मेहमान आया हो

ट्यूशन जाने से घर से छुट्टी मिल जाना

तब पढ़ाई ना करने का अच्छा बहाना मिल जाना 

बहार कहीं घूमने जाने का मौका मिल जाना 

बड़ा याद आता है वो दिन 

और घर में आए मेहमान अगर ये कहे 

की अभी छोटे बच्चे हो बड़ों की बात समझने की क्षमता नहीं है 

तब भगवान से ये दुआ करना की जल्दी बड़े हो जाना की

जब बड़े हमे उनके बीच में रख कर हमसे हमारी राय मांगे

और हमे पढ़ाई ना करने का दूसरा बहाना मिल जाना।


क्या दिन थे वो भी जब सबसे छोटे होने का फायदे थे

सबसे लाडली माना जाता था जो चाहो बिना मांगे सब मिल जाता था

सबका आखों का तारा कहलाती थी 

सबके कंधों पे बैठ के घूमना, रोने से सबका मिलके प्यार से मनाना

सबका मुझे हसाने की कोशिश करना, सबका मुझे खिलाने की कोशिश करना 

गलती करने पर चोटी बच्ची है केहेके माफ कर देना

अभी छटी है बड़े होने से खुद समझ जाएगी का भरोसा दिखाना

बडे याद आते हैं वो दिन नज़ाने कहां चले गए वो दिन।


घर पर मम्मा और पापा का मिलके पढाना और समझ कर

खुद होम वर्क कंप्लीट करना और टीचर का कॉपी में गुड वेरी गुड

और एक्सीलेंट देना और श्याबाशी दे कर अच्छा पढ़ने को इनकोरेज करना 

और क्लास टेस्ट में ट्वेंटी से ट्वेंटी लाना

और टेस्ट कॉपी को घर जाते वक्त हाथ में पकड़ के जाना

जिससे की घर में सबको पता चल जाए कि आज बेटी टेस्ट में पूरे अंक ले कर आई है 

पूरे अंक लाने पर और अच्छे मार्क्स लाने पर मां का घर में अच्छा खाना बनाना 

या फिर बहार से खाना मंगवाना नहाने कहां चले गए वो दिन।


स्कूल में यूनिफॉर्म से जानना की ये सब छोटे बच्चे हैं 

भगवान से तब प्रार्थना करना की जल्द से जल्द हमे वो बड़ा बना दे 

स्कूल फ्रेंड का ये कहना की अभी तो हमारा दस से बारा सब्जेक्ट्स हैं 

मेरी बड़ी बहन जो की बारवीं कक्ष्या में पढ़ती हैं उनके सिर्फ छे सब्जेक्ट्स हैं

तब भगवान से ये प्रार्थना करना की

हम भी जल्द से जल्द दसवीं बोर्ड्स खतम करके अच्छे नंबर से पास करके बारवी कक्षा में पहुंच जाए

जहां पे सिर्फ पांच से छः सब्जेक्ट्स पढने पड़ेंगे।


तब जैसे हम सबको था लगता

की बड़े होने से मिल जाएगी पढ़ाई से टीचर और पेरेंट्स के दांत से छुटकारा  

हो जायेंगे हम बड़े सही मायने में नहीं कहेगा कोई हमे छोटे बच्चे

नहीं उड़ाएगा कोई हमारा मज़ाक नहींं होगा कोई हमे कुछ बोलने वाला 

जहां हम सब बड़ों से डरते थे वहां होंगे हम सबसे बड़े 

सब डरेंगे हमसे और मानेंगे हमे सबसे बड़े करेंगे हमारी इज्जत 

मानेंग हमारी सारी बात 

तब होगी जगह हमारी बड़ों के बीच की बातों में 

तब मांगी जाएगी हमसे हमारी राय वो दिन नज़ाने कहां चले गए।


तब कहां था हमको पता की तब जब हो जाएंगे हम सही मायने में बड़े

आ जाएगी हमारे कंधों पे बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां

उठ जाएगा हमारे सर से छोटे होने का ताज 

थमा दिए जाएंगे हम हमारे हाथों में बड़े बड़े काम 

थमा दिए जाएंगे हमारे कंधों पर दूसरों की ख्वाबों को पूरा करने का फर्ज 

उठ जाएगा हमारे सीने से बचपन का पहनाया गया कवच 

वो दिन बड़े अच्छे थे बड़े मासूम थे।


तब नहींं बताया गया था की अब जीतने मज़े करने हैं कार्लो बादमें क्या पता मौका मिले न मिले

तब क्या पता था की बचपन की जिंदगी आसान थी तब जिम्मेदारियां नहींं थी पूरी करने को 

सिर्फ थी तोह खेल कूद मौज मस्ती और पढ़ाई  

तब क्या पता था की आगे की सफर मुश्किल होगी और मंजिल बहुत दूर 

आसान कुछ नहीं होगा आगे सिर्फ एक नई दुनिया में कदम रखोगे 

जहां मिलेंगे नए लोग होगी नई अरमान होंगे नई मुश्किलें होंगे नए

हसलाद मिलेंगे अलग अलग किस्म के लोग जिनपे भरोसा करके मिलेगा धोखा 

आगे सिर्फ होगी मंजिल तक पहुंचने की लड़ाई।


जिंदगी में सफल होने के लिए रास्ते नए नए और अलग अलग होंगे

मगर सही राह पे चलना होगा तुमको अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए 

जिंदगी एक नई दौर से गुजरेगी 

जिंदगी एक नए मुकाम पर ला कर खड़ा कर देगी जहां पर आगे का सफर तुम्हे खुदको तय करना होगा 

एक क्या बहुत चीजें मिली सीखने को जो वक्त मिलता है जी भर कर गुजार लो

क्या पता बीत जाने पर वापस तुम इसे याद कर के पछताओ 

की मिली तो थी जिंदगी पर अच्छी नहींं है आगे की अच्छी होगी सोच के बीता दी यूं ही।


अभी मेरे दिल में सिर्फ और सिर्फ यन्ही खयाल आता है 

जो भी बचे कूचे बचपन है उससे कम से कम अच्छे से गुज़ार lun 

क्यों की बीता हुवा वक्त और लम्हे वापस तोह नहीं आयेंगे 

बस मन और दिल में यन्हि बातें चलती है

अभी भी वक्त की अब जो भी कुछ बिना सिर दर्द के मिले हैं जी भर के गुज़ार लूं

क्यों की आगे की जिंदगी सिर्फ बचपन की    

यादों में हीं रहे जाएगी बड़े हीं याद आते हैं

वो दिन फिर से कहती हूं वो दिन भी क्या दिन थे।


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