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संदीप सिंधवाल

Tragedy

3  

संदीप सिंधवाल

Tragedy

वो ढोती बोझ

वो ढोती बोझ

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वो ढोती 

एक बोझ इंटों का

एक जिम्मेदारी का 

अनवरत बस यों ही। 

एक पेट की आग है 

एक धूप की आग है

दोनों से मुकाबला करना है

अनवरत बस यों ही।


जिंदगी का सवाल है साहब

छोटे बड़े का ख्याल है साहब

ख्वाहिशें भी तो बड़ी नहीं

पर उसे

छोटी जरूरतों के लिए ही 

चलते रहना है 

अनवरत बस यों ही। 


वो धोती 

इच्छाओं को 

वो रोती 

बस अंदर ही 

वो खोती 

अपनों में ही 

वो ढोती 

एक बोझ इंटों का 

एक जिम्मेदारी का।



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