वनवास कथा
वनवास कथा
चौदह वर्ष का वनवास मिला चले राम संग सीता और लक्ष्मण वन को प्रस्थान किया,
तेरहवें वर्ष में पंचवटी में रावण ने षड्यंत्र रच सीता का हरण कर उनका अपमान किया,
बारहवें वर्ष की समाप्ति में ये कैसा संताप मिला ,सीता का वियोग राम सह न पाया,
ग्यारहवां स्थान तुंग भद्रा में शबरी ने उनको सुग्रीव से मिलने की एक राह दिखाई,
दशानन के सर पर अब मौत का साया मंडराया था उसने अपनी मौत को खुद बुलाया था,
नवग्रह का अब कोई उपाय भी उसको बचा न पायेगा, वह अपनी मृत्यु ही मारा जाएगा,
अष्टभुज दुर्गा का रूप सीता में समाया था ,पर शांत रहकर ही उसने दशानन को ललकारा था,
सात समुद्र को भी पार कर
स्वामी मेरे आयेंगे दुष्ट रावण तब वे मुझे यहाँ से ले जायेंगे,
छठी इंद्री से पूर्वाभास करने की क्षमता सीता को आती थी, होगा विनाश तेरा पापी दशानन को कहती थी,
पंचवटी में तू छल से मुझको हर लाया, अब तू स्वयं काल के गृह में फंस आया,
चारों दिशा मैं शंखनाद गूंज गया, श्री राम ने रावण का संहार कर सीता को फिर पाया,
त्रिजटा ने हाथ जोड़ श्री राम को नमन किया कहा धरोहर आपकी हमने आपको अर्पण किया,
दोनों हाथों से देवता बरसा रहे थे फूल ,झूम उठा वन –उपवन खिल गए सारे मुरझाए फूल ,
एक दिन भी अब न व्यर्थ गंवाया पहुंचे अयोध्या धाम, हनुमान भी संग चले लेकर प्रभु का नाम !