वक़्त-वक़्त की बात
वक़्त-वक़्त की बात
ख़ुशियाँ कभी ग़मज़दा पल सब वक़्त-वक़्त की बात
दुश्वार जीना-मरना कहीं होती रहती प्यार की बरसात
आलम दिल का बताया जाता नहीं और छिपाया भी
इस कदर ख़ामोश समंदर से गहराइयों में डूबे जज़्बात
गुज़रते नहीं हैं दिन तुम्हारे बिन ज़िंदगी लगती उदास
नागिन की तरह डसने लग जाती है ज़ालिम सभी रात
गर पता होता इस वक़्त को भी कब उसको बदलना
मोहब्बत ही बसती यहाँ पर बन जाती जन्नत कायनात।