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Chandra prabha Kumar

Fantasy

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Chandra prabha Kumar

Fantasy

विस्मृत कविता

विस्मृत कविता

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मेरी पहली कविता वह

विस्मृति गर्भ में डूब गई, 

कहाँ पाउं वह भूली पंक्ति

मेरी मधुर तम अभिव्यक्ति। 


समर्पण की कामना हुई पूरी,

अनजानी यादों से पहिचान हुई,

पर लगता है कुछ खोया सा है, 

इसमें भी मेरी उस कविता सा,


कहाँ गया वह सूत्र कि जिस लिए

कभी तुमको पाना चाहा था, 

तुम मिले भी अनमिले से हो गए

नियति का यह क्या परिहास नहीं है


लगता है षटरस व्यंजन देकर भी, 

कोई लवण देना भूल गया,

थाल भरा मिष्ठान्न सामने है,

पर इच्छा मेरी कोई ले गया।


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