विश्व रेडियो दिवस
विश्व रेडियो दिवस
जादू का डिब्बा कहती थी दादी मां रेडियो को,
बटन दबाते ही कहता गाने दो अब नहीं रोको !
आज भी देखो आधुनिकता से करता मनोरंजन कुक !
कृष्णा औ आशीष हैं सबका बैंड बजाते, हैं थोड़े क्रुक।
कई दफा शरारत उनकी आडियंस नहीं कर पाती ब्रुक
आवाज़ बदलकर बवुआ भैया करते हैं हास्य फ्लुक।
हँसी-ठहाके,मधुरिम गाने रहते रेडियो से सबको हुक
चैनल अलग -अलग मिर्ची से, चटपटी खबर सुनाते !
दादी के जादूई डिब्बे के गाने नीलम मन हैं बहलाते।
