विरहन
विरहन


मैं प्यासी पिया मिलन की
सुध बुध सारी वारी
इत उत जा के ढूँढूँ तोहे मैं
हारी अब तो मैं हारी
पायल की रुनझुन न भाये
चूड़ी की खनखन न सुहाये
हर पल बाट निहारूँ
हारी अब तो मैं हारी,
सजना आकर अंग लगाएँ
आकर मेरी प्यास बुझाएं
पर तोहे न देखूँ तो
नैनन नीर बहाएं
हारी अब तो मैं हारी,
कोयल की कुहू कुहू भी अब तो
मोहे कड़वी लागे है
नीम की कड़वी पत्ती भी
मोहे मीठी लागे है
छत्तीस पकवानों से भरा थाल भी
अब तो अधूरा लागे है
हारी अब तो मैं हारी,
घर आंगन को लीप रखा हैं
कजरा गजरा पहन रखा है
तोहे नाम से मोहे अब तो
सखियन खूब चिढ़ाए
हारी अब तो मैं हारी
जोगनियां जोगनियां कहे
मुझे सब
कोई पगली कहन पुकारे
कोई न समझे बात जियां की
जो हर पल तोहे पुकारे
हारी अब तो मैं हारी,