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Meeta Khurana

Abstract

4.5  

Meeta Khurana

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नारी का सम्मान तुम्हीं को करना होगा

नारी का सम्मान तुम्हीं को करना होगा

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खुशकिस्मत लोगों के घर पायल खनकती है

नन्ही परी के आगमन से बगियाँ महकती है


धनलक्ष्मी भाग्य लक्ष्मी बेटियां कहलाती है

साथ अपने ये अपनी तकदीर लेकर आती है


माँ की परछाई बाप के दिल का टुकड़ा होती है

कौन कहता है कि आखिर बेटी बोझ होती है ?


इनकी खिलखिलाहट से सुरमयी तार बजते है

क्यों इनको पैदा होते ही दफन लोग करते है ?


दोनों खानदानों की इज्ज़त ये बखूबी निभाती है

इक बेटी ही है जो तकलीफ़ो में भी मुस्कराती है


प्रसव पीड़ा सहन कर घर का चिराग जो लाती है

क्या कारण है कि वो चुपके से नीर बहाती है ?


कदम से कदम मिलाकर साथ वो चलती है

फिर भी आदमी की हवस का शिकार वो बनती है


माँ बेटी बहन बहू पत्नी का रोल बखूबी निभाती है

फिर भी अपने हिस्से की खुशी को तरस जाती है


नजर बदलो नजरिया तुमको अपना बदलना होगा

जागो अब तो नारी का सम्मान तुम्हीं को करना होगा।


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