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Navni Chauhan

Romance

4  

Navni Chauhan

Romance

विरह

विरह

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कितना आसान होता है,

किसी को प्रेम का प्रस्ताव देना,

सिर्फ उस एक पल

को जीने के लिए,

जिस पल

तुम्हे मुहब्बत हो उनसे,

और फिर

जब प्रस्ताव हो स्वीकार उसे,

तो जी भर

प्यार बरसाना कुछ दिन,

मानो जैसे,

वो ही हो, 

तुम्हारा संपूर्ण जीवन आधार,

जिसने दिया तुम्हारे हृदय को,

मूर्त आकार।

जब मन भर जाए,

जब

वो भी तुमसे

जीवन भर का साथ चाहे,

तो उसकी भावनाओं को,

चाहे आग क्यों न लग जाए,

मगर हमे तो

केवल और केवल,

खुद का सुकून चाहिए।

कितना स्वार्थी है इंसान,

जो इस स्वार्थ को

प्रेम कहता फिरता है,

जिसमे उसे सिर्फ

खुद के सुकून से ही 

ताल्लुक रखना हो।

मेरे शब्दों के जाम

में शायद,

आज वो बात ही न हो,

जो किसी का हृदय छू ले,

मगर,

ये सत्य है कि

मेरे हर शब्द में सत्यता है।

अकसर प्रेम में

दूसरे को, खुद से अधिक चाहा हमेशा

हमेशा सोचा कि

मेरे प्रेम में न रहे कोई कमी,

पर ये भी सच है,

कि मेरा प्रेम सदैव अधूरा रह गया।

ये सब क्यों 

मेरे जीवन का अंश है

हर दफा,

नहीं मालूम,

किस गुनाह की सजा है।

बहुत दर्द है, इस जीवन में,

दिल गमजदा है।

मेरे चेहरे पर,

खामोशी का पहरा है।

चद लम्हों से ज्यादा,

मेरे पास,

सुकून कहां ठहरा है।

मुझे सांसे भी अब बोझ लगती हैं,

कहना ठीक नहीं,

पर अब ख्वाइश

खुदा के दीदार की है,

कम से कम,

वो तो मेरा हाथ नहीं छोड़ेगा,

बिच मझधार में मुंह न मोड़ेगा।

मुझसे अब शायद

किसी से कभी

प्यार ही न हो,

दिल सख्त इनकार करता है,

निकाह की बात से मन,

रास्ता बदल देता है।

सब जायज़ इस ज़िंदगी में

मगर

हमे प्यार और विवाह से 

कोई वास्ता ही नहीं रखना।

जब इस रास्ते में इतने कांटे हो,

फिर जान कर भी,

ये दर्द क्यों सहना।


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