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Goldi Mishra

Tragedy Others

4  

Goldi Mishra

Tragedy Others

विधवा

विधवा

2 mins
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लाल चुनरी आज बेरंग हो गई,

सजी थी जो चूड़ियां हाथों में,

आज बिखर गई टुकड़ों में,

सिंदूर था जो मांग में,

आज बह गया पानी में,

लाल चुनरी आज बेरंग हो गई,

मैं सिसक कर रोती रही,

अपनी ज़िन्दगी को उजड़ते देखती रही,

चुप चाप सब सुनती रही,

हालात के आगे मै खामोश रही,

लाल चुनरी आज बेरंग हो गई,


कल तक मैं गृह लक्ष्मी थी,

आज मैं अभागन थी,

नियती ना जाने मेरी कैसी परीक्षा ले रहे थी,

ज़िन्दगी मानो ठहर सी गई थी,

लाल चुनरी आज बेरंग हो गई,

कच्ची उम्र में पक्के रिश्तों में बांध दिया,

जब अर्थ ना पता था रिश्तों का उस उम्र में

रिश्तों से बांध दिया,

कभी लाल जोड़ा दे दिया कभी

सफेद लिबास मेरे हाथो में रख दिया,

ज़रा सा वक़्त ना लिया ज़माने ने और

मेरे चरित्र को बदनाम कर दिया,

लाल चुनरी आज बेरंग हो गई,

क्यों किसी ने मेरे जज्बातों को समझा नहीं,

क्यों मुझे मेरी किस्मत के फैसले लेने का कोई हक नहीं,

क्यों अब मेरी ज़िन्दगी के कोई मायने नहीं,

क्यों उजाड़ दिया उन सपनों को जो अभी तक पूरे हुए नहीं,

लाल चुनरी आज बेरंग हो गई,

क्या एक विधवा के जीवन में कोई खुशी नहीं हो सकती,

दो पल की राहत नहीं हो सकती,

अंधेरों को छोड़ वो रोशनी क्यों नहीं चुन सकती,

ज़माने की सोच क्यों अपना नजरिया नहीं बदल सकती,

लाल चुनरी आज बेरंग हो गई,

हर स्वाद हर रंग हर ख्वाहिश उससे छीन ली,

उसके ख्वाबों पर अजीब सी बंदिशे लगा दी,

अपनी टिप्पणी अपनी अलग ही सोच बना ली,

जी भर कर जीने की इच्छा भी उसकी दफन कर दी,

लाल चुनरी आज बेरंग हो गई,

थोड़ा हक थोड़ा सम्मान उन्हें भी दे दो,

उनकी उड़ानों को भी आसमान दे दो,

फिर उठ खड़ी हो जाएंगी वो उन्हें बस एक मौका दे दो,

गंगा से पाक चरित्र पर सवाल उठना बन्द कर दो,

       


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