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Manthan Rastogi

Tragedy

1.0  

Manthan Rastogi

Tragedy

विधवा दुल्हन

विधवा दुल्हन

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पूरी ना हुई ख्वाहिशे, सब अगवा रह गयी 

चार दिन की नववधू, अब विधवा रह गयी


कह के गए थे, लौटेंगे सरहद से जल्द ही

लौटे तिरंगे में लिपट अब दूरी रह गयी


कितनी खुशी से सब हुआ रिश्ते मिले गुण भी

किस्मत को ना पता थाअश्क होंगे अर्पण भी


कुछ दिन ही पहले कितने खूबसूरती क्षण थे

सीने पे गोली दुश्मनों की थम गए कण भी


सब थम गए कण भी, बातें बहरी रह गयी

मेहँदी ही वाले हाथों से सिंदूरी बह गयी


पूरी ना हुई ख्वाहिशे, सब अगवा रह गयी

चार दिन की नववधू, अब विधवा रह गयी


परिवार का मिलन हुआ तब दोनों मिले थे

जोड़ी थी इतनी खूब मानो पुष्प खिले थे


रीति रिवाज़ फ़ेरो में  जी ने वर दिया

जनमो जनम का साथ ना होने ही गिले थे


जन्मों जन्म का साथ, घात गहरी रह गयी

आँसुओं की वर्षा महावरे ही सह गयी


पूरी ना हुई ख्वाहिशे, सब अगवा रह गयी

चार दिन की नववधू, अब विधवा रह गयी


वादे ना हुए पूरे उसने साथ तो दिया

कंधा दिया शमशान तक ना तोड़ी चूडियां


औरतें ना ये करे उसे खूब नकारा

चिता को अग्न कर सुहागन भेष उतारा


विधवा हुई समाज को क्यों ज़हरी रह गयी

सुहागन थी तो सब पूछते अब अधूरी रह गयी


पुरी ना हुई ख्वाहिशें, सब अगवा रह गयी 

चार दिन की नववधू, अब विधवा रह गयी


कह के गए थे, लौटेंगे सरहद से जल्द ही

लौटे तिरंगे में लिपट अब दूरी रह गयी।


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