STORYMIRROR

Manthan Rastogi

Tragedy

4  

Manthan Rastogi

Tragedy

देश की दीमक

देश की दीमक

1 min
487

ये मज़हब के आने बाने

ज़हन में यू ही नहीं गड़ते 

जात पात को जुदा बता कर

वो आपस में नहीं लड़ते

धूल झोंकते आँख में सबकी

पर नज़रों में नहीं पड़ते

ये सादगी के लिबास को धरे

सफ़ेद धोती कुर्ते में खड़े 

हाथ जोड़ रख मुँह में मिश्री

उपरान्त जीत धर वादे सब सड़े 


ये काफ़ी अपघात नज़ारे हैं 

हम सब दीमक के सहारे है 

पर बीज हरेक हमारे हैं 

कुर्सी पर सब हत्यारे हैं 


ये ऊँच नीच के चोंच घोंसले

दिल में ऐसे ही नहीं बनते 

दौर चुनाव में बेचारे बन

बाद में अंध पैसा भरते

घोटालों पे घोटाले कर

महँगाई का दौर किया

ना कोई डिगरी ना कोई

कॉलेज

ना मुद्दों पर ही ज़ोर दिया

रईस अमीरों को ताकत दे

ग़रीब दबे और ज़मीन तले

और शिक्षा हो या कोई जगत में 

जनता को बस ये कुचले


और ये हालात बेचारे हैं 

यहाँ सब भगवान सहारे है 

पर बीज हरेक हमारे हैं 

कुर्सी पर सब हत्यारे हैं 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy