देश की दीमक
देश की दीमक
ये मज़हब के आने बाने
ज़हन में यू ही नहीं गड़ते
जात पात को जुदा बता कर
वो आपस में नहीं लड़ते
धूल झोंकते आँख में सबकी
पर नज़रों में नहीं पड़ते
ये सादगी के लिबास को धरे
सफ़ेद धोती कुर्ते में खड़े
हाथ जोड़ रख मुँह में मिश्री
उपरान्त जीत धर वादे सब सड़े
ये काफ़ी अपघात नज़ारे हैं
हम सब दीमक के सहारे है
पर बीज हरेक हमारे हैं
कुर्सी पर सब हत्यारे हैं
ये ऊँच नीच के चोंच घोंसले
दिल में ऐसे ही नहीं बनते
दौर चुनाव में बेचारे बन
बाद में अंध पैसा भरते
घोटालों पे घोटाले कर
महँगाई का दौर किया
ना कोई डिगरी ना कोई
कॉलेज
ना मुद्दों पर ही ज़ोर दिया
रईस अमीरों को ताकत दे
ग़रीब दबे और ज़मीन तले
और शिक्षा हो या कोई जगत में
जनता को बस ये कुचले
और ये हालात बेचारे हैं
यहाँ सब भगवान सहारे है
पर बीज हरेक हमारे हैं
कुर्सी पर सब हत्यारे हैं