एक मुहब्बत बरगद सी
एक मुहब्बत बरगद सी
1 min
314
रहता है ज्यों का त्यों ही
और छाँव देता बरगद
इतना विशालकाय भी
जड़त्वीय है बरगद
और बरगदो के जैसी
है माँ बाप की कवायद
वो ढाल हैं हमारी
शाफ़ी है वो मुहब्बत ।
कितने ही प्रेम रस में
पाला गया है हमको
अदब सी ही सरस में
ढाला गया है हमको
जब जब घटा गलत कुछ
या हमने खतायें की हैं
हर बार तसल्ली से
सँभाला गया है हमको।
हर बार निकाला है
हमको मुसीबतो से
झेली हंसी खुशी है
उन दोनों ने क़यामत
बस दूर हूँ अभी मैं
पर कम नहीं है चाहत
वो ढाल हैं हमारी
शाफ़ी है वो मुहब्बत
माँ बाप की मुहब्बत
माँ बाप की मुहब्बत ।
