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Manthan Rastogi

Abstract

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Manthan Rastogi

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औरतें

औरतें

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कमीज़ पर अब मर्द की

आस्तीन ना हैं औरतें

आसमान पे हैं अब

ज़मीन ना हैं औरतें।


बाप,भाई या पति के

बटुए की ना नौबतें

मेरे या तुम्हारे अब

अधीन ना हैं औरतें


खुद का खुद में खुद से

खुद सँभालना है आ गया

बहन बेटियों को दुनिया

ढालना भी आ गया।


ना किसी की ज़ुर्रत

आँख फ़ाड के जो देखे इनको

जूडो और कराटे कर

इन्हे मारना भी आ गया


हालांकि कुछ जयचंद हैं 

जिनकी नज़रो में ये सब गलत है

आदमी ही इस जगत का

महात्मा ये क्या शपथ है।


ये तो आदमी के द्वारा

आदमी की गफ़लत है

नारी के अलग प्रभाव 

पर प्रभाव निश्चलत हैं


निश्चलत है ये कि अब ये

औरतें ना बैठेंगी घर

काबिलियत से अब करेंगी

उँचा अपना झुकता सर।


अब समाज को पता चला

बौनी नहीं हैं औरतें

चुप है लेकिन बोलती

मौनी नहीं हैं औरतें।


और डरती सहमती थी

जो सलीम ना थी औरतें

मेरे या तुम्हारे अब

अधीन ना हैं औरतें।


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