विदाई.....
विदाई.....
दूर गुंज रही थी शहनाइयाँ
इस क्षण की अनुपम बेला पर
अतिथियों का आगमन और चहल पहल
दूर कर रहा था तनहाइयाँ।
बचपन बीता ये घड़ी आई
दुल्हन को घेर रही थी
उदासी और तन्हाई।
पर लग रहा था
देखकर उसका रूप
जैसे सूरज ने
बिखेर दी हो धूप।
बाल घटा का दे रहे थे इशारा
लाल चुनरिया
टीका था जगमगा रहा।
रौनक का ये पहर
ढा़ रही थी उस पर कहर
नये जीवन मे प्रवेश
दे रही थी नया संदेश।
भूल जा बाबुल की गली
याद कर ले नयी गली
ये कैसी रीत है
कैसा है फसाना।
अपनों को पराया करना
परायों को अपनाना
घर से निकलने पर
हो रही उसकी विदाई
पर ...आज उसे सारी दुनिया
लग रही थी परायी।।
