वो पिता कहलाते हैं
वो पिता कहलाते हैं
धूप की तपिश वो सहते हैं
लगातार काम करते रहते हैं
बच्चों की मुस्कान पर वारी जाते हैं
वह पिता कहलाते हैं
बच्चों का झूला बन जाते हैं
कंधों पर बैठकर खूब घूम आते हैं
जरा सी फरमाइशी को पूरा कर जाते हैं
वह पिता कहलाते हैं
कभी ना हो हिम्मत पूरा करने की
तब अपना हौसला ना कम कर पाते हैं
जी जान लुटा कर बच्चों को सब कुछ दे जाते हैं
वह पिता कहलाते हैं
वो बच्चे अब आँख दिखाते हैं
एक बात पूछने पर सौ जवाब दे जाते हैं
पिता की कमियों को गिनाते हैं
अगर कुछ कह दे बच्चों से, फिर पछताते हैं
और उदास हो जाते हैं
वह पिता कहलाते हैं
मां से मन की हर बात बताते हैं
बच्चों के साथ समय को तरस जाते हैं
दरवाजे पर निगाह लगाते हैं
जरा सा पूछ ले बच्चे हाल उनका
दस दिन वही बात सुनाते हैं
वह पिता कहलाते हैं
बच्चों की परेशानियों में हल बन जाते हैं
बच्चों को खूब हिम्मत बढ़ाते हैं
मैं हूं ना ! क्यों घबराते हो ?
कहकर आंखों में पानी लाते हैं
बरगद की छांव सा होता है पिता
जो अपने रहने से, बच्चों के दिल में
ठंडक और सुकून दे जाते हैं
सारे घर को धूप से बचाते हैं
प्यारा सा घर बनाते हैं
एक बरगद की छाँव बन जाते हैं
वो पिता कहलाते है।