STORYMIRROR

Anshu sharma

Abstract

3  

Anshu sharma

Abstract

भागती जिंदगी

भागती जिंदगी

1 min
232


जीवन के पल का क्या पता 

आज यहाँ है ,कल विदा ।

शान शौकत, रूपया ,पैसा यहीं रह जाता है ,

जब आए बुलावा तो कोई ना साथ निभाता है।

जब मौत खड़ी दरवाजे पर, तब याद आए, बीते सारे पल,

तब लगे जिंदगी छोटी सी,अरमानो की माला टूटी सी।

तब लगे निकल गयी जिंदगी कमाने मे 

सारे रिश्ते गँवाने मे, तब रिश्तो का ना मोल समझा,

हमेशा मोह माया मे था, उलझा।

समय ना था, माता पिता का हाल ना पूछा 

तब, उसके आगे दौड़ मे ना था कोई दूजा

आज माँ की गोद मे आराम को दिल चाहता है,

जब पिता का हाथ सिर पर तसल्ली दे जाता है,

पत्नी और बच्चो को बाँहो मे भर लूँ।

कसकर भागती जिंदगी को पकड़ लूँ

काश! काश! ऐसा हो पाता!

आज वक्त रूक जाता ..

सच कहा ..जिंदगी दो पल की दास्तां

आज हम यहाँ अगले पल हम कहाँ! 














Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract