भागती जिंदगी
भागती जिंदगी
जीवन के पल का क्या पता
आज यहाँ है ,कल विदा ।
शान शौकत, रूपया ,पैसा यहीं रह जाता है ,
जब आए बुलावा तो कोई ना साथ निभाता है।
जब मौत खड़ी दरवाजे पर, तब याद आए, बीते सारे पल,
तब लगे जिंदगी छोटी सी,अरमानो की माला टूटी सी।
तब लगे निकल गयी जिंदगी कमाने मे
सारे रिश्ते गँवाने मे, तब रिश्तो का ना मोल समझा,
हमेशा मोह माया मे था, उलझा।
समय ना था, माता पिता का हाल ना पूछा
तब, उसके आगे दौड़ मे ना था कोई दूजा
आज माँ की गोद मे आराम को दिल चाहता है,
जब पिता का हाथ सिर पर तसल्ली दे जाता है,
पत्नी और बच्चो को बाँहो मे भर लूँ।
कसकर भागती जिंदगी को पकड़ लूँ
काश! काश! ऐसा हो पाता!
आज वक्त रूक जाता ..
सच कहा ..जिंदगी दो पल की दास्तां
आज हम यहाँ अगले पल हम कहाँ!