वहीं नुक्कड़ों पे है
वहीं नुक्कड़ों पे है
वही नुक्कड़ों पे है रहता मेरा दिल
जहां से हुई थी सूरूरे मोहब्बत
जहां से इशक की पड़ी मुझको आदत।
जहां लगजिशें थी खताओं में मेरी
जहां चिलमनों से हुई थी मोहब्बत।
वही नुक्कड़ों पे है रहता मेरा दिल
जहां शोख तितली मुझे छू के जाती।
जहां की हवाओं से खुश्बू सी आती
जहां दर के पर्दे में सिमटी सी होती
जहां खिड़कियों से मोहब्बत सी होती।
वहीं नुक्कड़ों पे है रहता मेरा दिल
कभी उनके आने से खिंचता हुआ मैं
कभी मोम के जैसे रिसता हुआ मैं।
कभी बेगुनाही मैं अपनी सुनाता
कभी खिड़कियों पे उसे मैं बुलाता
वहीं नुक्कड़ों पे है रहता मेरा दिल।