कितनी हसरत थी कभीकि तेरा रस्
कितनी हसरत थी कभीकि तेरा रस्
कितनी हसरत थी कभी
कि तेरा रास्ता देखूँ,
जैसे सूरज की किरण
का कोई रास्ता देखे,
जैसे बच्चा कोई
माँ का रास्ता देखे,
जैसे दो लोग किसी
लफ्ज़ का रास्ता देखे,
कितनी हसरत थी कभी
मैं तुझे पल पल देखूँ,
जैसे दोसेज़ा कोई चाँद
का कंगन देखे,
जैसे तारों में कोई टूटना
अपना देखे,
जैसे हाथों को कोई रेल
से हिलता देखे,
कितनी हसरत थी कभी लफ्ज़
मैं बुनता देखूँ ,
जैसे मछुआरा कोई जाल
को बुनता देखे,
जैसे आशिक़ कोई
माशूक बिछड़ता देखे,
जैसे होंठों की कशिश
प्यास का रास्ता देखे,
सोचता हूँ कभी मिल के
तुझे इतना देखूँ
वक़्त रुक जाए कहीं
शाम ठहर जाए वहीं
प्यास होंठों को लगे
पाँव ठहर जाए वहीं
पाँव ठहर जाए वहीं।