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Akhlaque Sahir

Abstract

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Akhlaque Sahir

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ले कर चला हूँ

ले कर चला हूँ

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भरोसे का अलम ले कर चला हूँ

तने तन्हा मुसाफ़िर हो चला हूँ


तआक़ुब में कोई रहता है हर दम 

उन्हें दस्तक नहीं दे कर चला हूँ


नई नस्लों की खातिर यार मैंने

कई मौसम के गंदम दे चला हूँ


मेरे हुज़्रे का रौशनदान हो तुम

मैं तेरे साथ एक मुद्दत चला हूँ


वो पहला घर है उसका जानते हो

कबीले की वज़ह से दे चला हूँ


तुम्हारे ख़्वाब, यादें, रात तन्हा

इन्हीं लम्हों में सदियों जी चला हूँ!




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