गज़ल
गज़ल
शबे ख़्वाब को तआबीर में लाते हुए लोग.
कितने बेबस हैं अखबार में आते हुए लोग.
बेख़्याली में ख़्यालों की खबर पूछते हैं.
मस्खरे लफ़्ज़ से मा'यार बनाते हुए लोग.
बेसबब बात बढ़ी उस दिन सो हम खामोश थे.
राब्ता खत्म किये तिल को ताड़ बनाते हुए लोग.
एक को छोड़ पकड़ लेते हैं दस्त दूज़ा जालिम.
अश्क़ ए सावन में कहीं आग लगाते हुए लोग.
उनके बागीचे में इक फूल निकल आया था
और फिर जख्मी हुए हाथ बढ़ाते हुए लोग।