(गज़ल)आज़माते हुए
(गज़ल)आज़माते हुए
हमारा जब्त आजमाते हुए
गया है कोई मुस्कुराते हुए
उन्हें मैं दूर तलक छोड़ गया
खुद अपने आप में समाते हुए
बहुत दिनों तक चला वो इश्क़
किसी आसेब सा सताते हुए
नींद आई थी रतजगों के बाद़
और फिर तू मिला जगाते हुए
आखिरी इश्क़ की पहल थी क्या
एक शय से मुझे मिलाते हुए
इस कदर कौन प्यार करता है
बोल बैठा था बरगलाते हुए