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Akhlaque Sahir

Romance

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Akhlaque Sahir

Romance

इक कारोबार ए इश्क़

इक कारोबार ए इश्क़

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अब कि पलट के देखना मुम्किन नहीं लगा,

इक शख़्स सारे शहर में शामिल नहीं लगा,


उस इक कसम के वास्ते मैंने कसम न दी,

लगने लगा लगेगी कसम लेकिन नहीं लगा,


मैं मुतमइन हुआ ही नहीं इत्तेफाक से,

गर इत्तेफाक था तो क्यों दिल नहीं लगा,


हम को हमारी जौब मुसलसल नहीं मिली,

उन दफ्तरों की जान लगूँ पर नहीं लगा,


इक कारोबार ए इश्क़ चला वो भी चार दिन,

इस कारोबार में मैं मुकम्मल नहीं लगा,


नमनाक अपनी आँख भी होने लगी सो हम,

कुछ देर अपने आप में बिल्कुल नहीं लगा !


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