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Minal Aggarwal

Tragedy

4  

Minal Aggarwal

Tragedy

वह अभागा आशावादी

वह अभागा आशावादी

2 mins
327


वह एक बहुत ही ज्यादा 

प्यार करने वाला इंसान था 

अपने बच्चों पर जान लुटाने वाला 

अपने परिवार तक ही सीमित नहीं था 

वह शख्स 

वह महान था 

उसकी महानता को शब्दों में 

वर्णित नहीं किया जा सकता 

सब कुछ होते हुए भी 

पता नहीं क्यों 

वह अभागा था 

बचपन से वह किस्मत का मारा 

था 

सबको कोई इतना प्यार करे और 

बदले में उसे प्यार न मिले 

सबकी वह सेवा करे और 

जब उसे जरूरत पड़े 

कोई उसकी सेवा न करे

वह सबकी इज्जत करे और 

सबकी बिना बात के दुत्कार सहे

वह जिंदगी से जीने की आशा 

करे और 

अपने ही उसे मौत दें

यह भला कहां का इंसाफ है लेकिन 

यह दुनिया है 

यह बाहर वाले तो बाद में 

पहले अपने घर के लोग ही 

मारते हैं 

उस आदमी ने सारी उम्र 

सबका किया होगा 

किसी से कभी कुछ 

करवाया नहीं 

किसी के आगे कभी हाथ नहीं 

फैलाया 

किसी से कभी कुछ मांगा 

नहीं 

उम्र के आखिरी पड़ाव पर 

जब वह थोड़ा सा बीमार पड़ा 

बिस्तर पकड़ लिया और 

लाचार हुआ तो 

सबने उससे मुंह फेर लिया 

लेकिन उस हिम्मतवाले ने 

तब भी उम्मीद का दामन 

थामे रखा 

उसकी आंखों में 

हमेशा एक आशा का 

तारा टिमटिमाता रहता था 

थोड़ा सा सहयोग 

कहीं से समय रहते 

उसे मिलता तो 

वह अभी कुछ साल तो और 

चलता लेकिन 

सब कुछ होते हुए 

वह अभाव में रहा 

यह एक कड़वा सत्य है 

किसी की भी आंखें 

आश्चर्य से फट सकती हैं और 

उसकी बेचारगी की कहानी 

सुनकर नम हो सकती हैं

वह बिस्तर से न लगता 

गर समय रहते 

उसका सही इलाज करवाया 

जाता लेकिन 

न चाहते हुए भी 

वह बिस्तर पर पड़ गया 

सालों पड़ा रहा 

जीने के लिए संघर्ष 

करता रहता 

उसे मौत की कगार तक 

घसीट घसीटकर लाया गया 

दुनिया की नजरों में 

भला बनने के लिए 

उसे उसके जीवन के 

आखिरी क्षणों में 

दिखावे के लिए 

अस्पताल पहुंचाया गया 

वहां भी उसे उम्मीद थी कि 

वह ठीक हो जायेगा और 

अपने शहर 

अपने घर वापिस लौटकर 

जायेगा 

अस्पताल वालों ने उसे 

घर ले जाने की इजाजत भी 

दे दी 

अस्पताल के स्टाफ से 

वह दिल खोलकर बातें करता 

रहा 

उसने अपना संयमित और 

अच्छा व्यवहार 

इस कठिन समय में 

भी एक क्षण को न त्यागा

इस जीने मरने के 

समय भी 

उसके साथ जो सबका 

व्यवहार होना चाहिए था 

वह नहीं था 

उसे अस्पताल के कमरे में 

अकेला भी छोड़ा गया 

कोई भी उसके साथ नहीं 

था 

एकाएक उसकी हालत 

बिगड़ गई 

उसे वेंटिलेटर पर 

रखने की डॉक्टर ने हिदायत दी लेकिन 

पैसा बाप से अधिक 

महत्वपूर्ण था तो 

उसके खुदगर्ज और नालायक बेटे ने 

उसके जीवन को नहीं 

उसके लिए मौत को चुना

वह देवता स्वरूप इंसान 

अपने ही परिवार की 

अनदेखी के कारण 

मौत की भेंट चढ़ गया 

उसका शरीर बिना आत्मा का 

उसके मरने के बाद भी 

एक चंदन की लकड़ी सा महक 

रहा था 

उसके आशा भरे दिल को 

न जाने कितनी बार तोड़ा 

गया था लेकिन 

वह फिर भी कहीं से 

निराश नहीं था 

मुंह से उसके 

आह तक नहीं निकली 

जिन्होंने उसके साथ 

इतना बुरा किया 

उनको भी दुआएं दीं 

उनके लिए भी 

उसके दिल से कोई 

बददुआ न निकली।


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