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Nitu Rathore Rathore

Abstract Romance

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Nitu Rathore Rathore

Abstract Romance

वफ़ा में रक्खा है

वफ़ा में रक्खा है

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एक पत्थर सिला में रक्खा है

जाने किसकी वफ़ा में रक्खा है।


मुझ को मालूम है मेरे लिए तूने

अब की सावन घटा में रक्खा है।


इश्क़ की जीत कहाँ होती है

जुर्म मेरा सज़ा में रक्खा है।


वैसे तो मोम दिल मैं रखती हूँ

जो संभालकर हया में रक्खा है।


मेरे इस दिल के कुछ उजालों को

तुमने जलती शमा में रक्खा है।


याद सिमटी हुई है जलवों में

जो रक्खा है अदा में रक्खा है।


प्यार छुपा के तुम तो करते हो

तुमको नादाँ खता में रक्खा है।


तुम्हें देखकर ही लट बिखरती है

एक जादू हवा में रक्खा है।


फूल बना के "नीतू" ने मन को अब

खुशबू-ए- वफ़ा में रक्खा है।



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