वेदना
वेदना
मैं एक नारी हूँ और ये मेरी वेदना है
मुझे अपने शब्दों से तुम्हारा दिल भेदना है
कोई देखो मेरे चेहरे की मुस्क़ुराहट
कोई देखो उस दानव के सामने भी मेरी राहत।
ये दानव उस मनुष्य से भला है
जो मानव नारी को देख कर मचला है
उस पुरुष के सामने मैं असहज हूँ
इसकी मासूमियत पर मैं अचंभित हूँ।
वो मुझे नोच खाने को बेताब है
इसकी आखों में एक अद्भुत आब है
वो पुरुष बस मुझे मिटाने पर तुला है
इस प्राणी के मन मे बस प्यार घुला है।
है जीव तुम यूँ ही रहना
अपनी बात मुस्कां से कहना
मैं भी उन्मुक्त उड़ पाऊँ इस गगन में
मेरी मुस्कराहत बिखरे चमन में।
ये पुरुष मेरा रक्षक बने
दुर्गा बन जाऊँगी मैं जो ये भक्षक बने।