STORYMIRROR

Drdeepshikha Divakar

Others

3  

Drdeepshikha Divakar

Others

बरखा

बरखा

1 min
282

देखो तो बादल कुछ कह रहे है

भर गए है गले तक अब बह रहे है

कोई इस आहत से मुग्ध है

कोई सहमा सा है

किसी की मुस्कान लौट आई है

किसी को ये बहुत रुलाई है

किसी के घर कड़ाई चढ़ी है

किसी की रूह कांपी पड़ी है

वो आज कहाँ सिर छुपायेंगे

जब तुम्हारे अरमान बारिश से मचल जायँगे

जब वो बादल ही ये बूंदें न संजो पाया

तो तुम क्या पा जाओगे

इतना दर्द लेके कहाँ जाओगे

की कह दो अपने अरमानो से

ज्यादा न बहको

वो गरीब भी तो बैठा हैं

उसके मन की तरह महको

ओ बरखा तू जरा थम के बरस

कहीं वो मानव अन्न को जाए न तरस

तेरा आना तय है

पर किसी को इसी बात का भय है

तू आ पर खुशहाली ला

ज्यादा न बरस अब जा


Rate this content
Log in