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Drdeepshikha Divakar

Drama

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Drdeepshikha Divakar

Drama

अतीत

अतीत

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कभी कभी अनजाने में अतीत के पन्ने खुल जाते हैं 

कभी कभी हवा में वो लम्हे घुल जाते हैं 

कभी बेबाक हवाओं से बातें किया करते थे 

कभी दोस्तों संग अठखेलिया किया करते थे 


कि तब कोई जीवन की कश्मकश न थी 

कि तब कोई ख़ास ख्वाहिश भी न थी 

वो घर से निकलकर 

दोस्तों से मिलकर 

पानी से मसखरी करना 


वो हमारी हँसी और बहता झरना 

आज जब पलटकर देखते हैं 

न दोस्त दीखते हैं 

न झरने बहते हैं 


उन हवाओं ने भी अब बतियाना छोड़ दिया 

उस पानी ने भी अब थामना छोड़ दिया 

क्यों ये उम्र बढ़ती गई 

खुशियाँ घटती गई 

ये पैसे जो मुट्ठी भर कमाते हैं 

इनसे वो फुर्सत और दोस्त नहीं ला पाते हैं 


काश कोई करिश्माई मरहम मिल जाए 

ये घाव अतीत के झट से भर जाए 

दिल करता हैं फिर से दिल खोल कर हसु 

दिल करता है फिर से हवाओं से बात करूँ..

 

फिर वो याराना खिल जाए 

फिर जीवन में वो ख़ुशी घुल जाए।


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