STORYMIRROR

वादों वाली शाम

वादों वाली शाम

1 min
430


वो तुम्हारे किये गए वादों वाली शाम भी, 

कब की आकर खाली हाथ लौट गई।


फिर उसके पीछे-पीछे सितारों वाली उजियारी,

रात भी बिन गुनगुनाये ही भरे दिल से लौट गई। 


फिर एक नयी आस वाली भोर आयी भी और 

बिन कुछ बताये अनमुनि सी हो कर लौट गयी। 


फिर एक नयी दोपहर भी आकर बैरंग ही लौट गयी,

उसके ठीक पीछे पीछे तुम्हारे वादे वाली शाम आई।


काफी देर इधर-उधर अकेली ही टहलती रही और 

फिर थक कर अपने घुटनों में सर छुपाये ही बैठी रही।


फिर काफी देर अकेले ढीठ की तरह वहीं बैठी रही

फिर बे-मन से कुछ मन ही मन बड़बड़ाते हुए लौट गयी।  


गर ना हो पता तो कर लो पता मुझे नहीं लगता अब

वो शाम फिर कभी लौट कर आएगी तुम्हारे द्वार !  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance