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yogyata sharma

Abstract

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yogyata sharma

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उथल-पुथल

उथल-पुथल

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इस आर है उस पार है

अपनो में क्यूँ दीवार है।

क्यूँ देश को तुम यूँ तोड रहे

ये कैसा कारोबार है।

जिस माँ के टुकडे करते तुम

अपनी झोली फिर भरते तुम।

सोचा ना कभी क्यूँ तुमने यूँ

वो सब की पालनहार है।

कुछ मुद्दा तो समझा होता

कुछ देश का हित देखा होता।

ये और नही कुछ भरी ठंड में

षडयंत्रों की अंगार है।

जो आज वो जो मौन है

तेरी चालों का दौर है।

जो देख रहा सब भांप रहा

वो देश का चौकीदार है।


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