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yogyata sharma

Others

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yogyata sharma

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द्विपक्षीय रूप

द्विपक्षीय रूप

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सिखाया जो किताबो ने, जिन्दगी में उलट पाया,

सच्चाई की राह में ही, दिखा है झूठ का साया।

कभी सच ही पढ़ा करते थे हम अपनी किताबों में,

चले जब जग की राहों में तो झूठों को खुदा पाया।

बड़ो की सीख थी चलते रहो तुम नेक राहों पर,

चले जब उन निशानों पर तो खुद को एक ही पाया।

जो देखा था जो सीखा था वही आधार है अपना,

कदम बदले कभी अपने, कभी लोगों ने सिखलाया।

बदल जाता है मौसम भी, बदल जाती है शाखें भी,

पर जब भी पेड़ को देखा जड़ों के साथ ही पाया।


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