STORYMIRROR

yogyata sharma

Abstract

3  

yogyata sharma

Abstract

अहम्

अहम्

1 min
261


जिधर देखो वही 'मैं' है,आज लोगों में 'हम' कम है।

मेरी दुनिया, मेरा जीवन,मेरे सपने का मौसम है।


दिखी जड़ खत्म होती सी,पड़ी उजरी कियारी सी।

इधर फेंकी,उधर फेंकी,कभी भू में समाई सी।

नये सपने, नयी दुनिया, नयी शाखों का मौसम है।

जिधर देखो --------------


वो भूले थे जो अपनों को, परायों ने भी ठुकराया।

जहाँ रावण बुरा अब भी, विभिषण आज क्यूँ भाया।

पराई पीर, पराया रंग,पराये जग का मौसम है ।

जिधर देखो वही ------------

              

         


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract