उथल पुथल सी मची है दुनिया में,
उथल पुथल सी मची है दुनिया में,
लथपथ है देश की अर्थव्यवस्था,
और मंजर है देश की बर्बादी का,
केमिकल्स को बो दिया हर जगह,
जो दर्द बना कोविड बीमारी का।
उथल पुथल सी मची है दुनिया में,
पहले पशु फिर पक्षी अब विलुप्त,
कगार पर ठहरा मानव दुनिया में,
ऐसा तकनीकी दौर बना दुनिया में।
दिन दूर नहीं जब मानव होगा,
जल जंगल से दूर तांडव होगा,
विश्व मंच की धरती पर कोविड,
कल फिर तकनीकी का दानव होगा।
विश्व मंच तय नहीं कर पाया है,
लोकतंत्र में मानव क्या चाहता है,
कोविड पर शोध राय एक नहीं,
जांच का विषय कोविड आया है।
क्या कहें लेखनी का तराशा सत्य है,
कोविड पर न जान पाया कोई तथ्य है,
कोविड के सत्य पर बहस बस युद्ध है,
जो दुनिया की जैविकी का विशुद्ध रुप है।
