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Vivek Netan

Abstract

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Vivek Netan

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उस सुबह यूँ लगा

उस सुबह यूँ लगा

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इस कबिता का पहला भाग यहां पढ़े 

https://storymirror.com/read/poem/hindi/uxh2kt7t/us-raat-yuenn-lgaa/detail


उस रात की सुबह भी कुछ तो अजीब थी 

था सकून चेहरे पर मगर आँखों में नींद थी 

बेहया हो गए थे होंठ उस कयामत की रात 

इक शोर था दिमाग में पर जुबान खामोश थी 


सोये थे बो बेफिक्रे से हो के कुछ यु मेरी बाहों में

मीठी सी खुशबू घुली थी उस दिन फिजाओ में 

ना जाने कैसी निखार आई थी खूबसूरती उसकी 

सोते यु लगा के वो किसी परी से काम ना थी 


दिल ने तो चाहा सोने दूँ यु ही उसे बेपरबाह 

मगर चिड़ियों और भबरो ने मेरी सुनी कहाँ 

कयामत से पहले ही इक कयामत सी गुजरी 

उसने यूँ बदली करबट के जुल्फे मेरे चेहरे पे थी 


में भी चुप बो भी चुप बस धड़कनो का शोर था 

उसकी आँखों में शर्म और मेरे दिल में चोर था 

बड़ी मुश्किल से समेटा खुद को उसने बाहों में 

सिरहन सी थी जिस्म में और होंठो पे हंसी दबी थी 


बड़ा मुश्किल हो गया था उनको रुखसत करना 

हो के गुलाम रह गया था उनका मेरा जर्रा जर्रा 

लाखों तूफ़ान थे दोनों ही के दिलों में उमड़े हुए 

आँखें डबडबा गई दोनों की और बो मेरी बाहों में थी।


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