उपाधि उपनाम
उपाधि उपनाम
हम लिख नहीं सकते
कविता और लेख !
हमें है कहाँ फुर्सत पढूं
किसी का आलेख !
उपाधि तो अनजाने
में किसी ने दे दिया !
अपने नाम के आगे - पीछे
उपनाम लगा लिया !
कहने लगे अपने को
'कवि, लेखक
और 'साहित्यकार '
अभिनय की भंगिमा
को जीवन पर्यंत
सिखा नहीं खुद
बन गए कलाकार !
नाटक के मंच को
कभी सुशोभित नहीं किया !
ना कभी हमसे नाटक
मंचन ही किया गया !
फिर भी हम बन गए
एक सफल नाटककार !
कभी "आंबेडकर "
के भक्त हम बन जाते हैं
विभेदों के बावजूद
गाँधी पटेल की
मूर्ति बनाते हैं !
कभी 'चाय वाला '
तो कभी 'प्रधान सेवक '
हम स्वयं बन जाते हैं !
कभी 'धनुर्धर ' तो कभी हम
'मियां मिठ्ठू 'कहलाते हैं !
परन्तु यह सबको ज्ञान है !
हम कौन हैं ?
कैसे हैं ?
यह सबको पहचान है।
